हर ग्यारस ने यो खाटू बुलावे,
म्हारो बाबो म्हाने लाड़ लड़ावे,
मायड़ और बाबुल की जईया,
हर ग्यारस ने यों खाटू बुलावे,
म्हारो बाबो म्हाने लाड़ लड़ावे।।
पग धरता ही खाटू में,
अइयाँ लागे है घर माहि आया,
नैना सु अमृत बरसे,
जद नैना सू नैन मिलाया,
म्हारो बाबो लखदातार,
म्हापे खूब लुटावे प्यार,
जईया बछड़ा ने चाटे है गईया,
हर ग्यारस ने यों खाटू बुलावे,
म्हारो बाबो म्हाने लाड़ लड़ावे।।
मायड़ की जइयाँ बाबो,
म्हाने गोद्या की माही बैठावे,
बाबुल की जइयाँ म्हारे,
सर पर यो हाथ फिरावे,
लेवे कालज़े लगाए,
अपने हिवड़े से लिपटाए,
घाले बाथी फैलाकर के बईया,
हर ग्यारस ने यों खाटू बुलावे,
म्हारो बाबो म्हाने लाड़ लड़ावे।।
कदे छप्पन भोग जिमावे,
कदे रोट बाजरी खिलावे,
दो दिन तक सागे सागे,
सारी खाटू नगरिया घुमावे,
यूँ ही करतो रिजे याद
सारे भक्ता की फरियाद,
थारो ‘श्याम’ पड़े थारे पईया,
हर ग्यारस ने यों खाटू बुलावे,
म्हारो बाबो म्हाने लाड़ लड़ावे।।
हर ग्यारस ने यो खाटू बुलावे,
म्हारो बाबो म्हाने लाड़ लड़ावे,
मायड़ और बाबुल की जईया,
हर ग्यारस ने यों खाटू बुलावे,
म्हारो बाबो म्हाने लाड़ लड़ावे।।
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तर्ज – तेरे होंठो के दो फूल।
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स्वर – श्याम अग्रवाल जी।