मेरे मोहन तुम्हे अपनों को
तड़पाने की आदत है
मगर अपनों को भी है
जुल्म सह जाने की आदत है
मेरे मोहन तुम्हे अपनो को
तड़पाने की आदत है।।
चाहे सौ बार ठुकराओ
चाहे लो इन्तहा मेरा
जला दो शौक से प्यारे
चाहे लो आशिया मेरा
चाहे लो आशिया मेरा
शमा पर जान दे देना
ये परवानो की आदत है
मेरे मोहन तुम्हे अपनो को
तड़पाने की आदत है।।
बाँध कर प्रेम की डोरी
से तुमको खिंच लाऊंगा
तुम्हे आना पड़ेगा श्याम
मैं जब भी बुलाऊंगा
की मैं जब भी बुलाऊंगा
की दामन से लिपट जाना
ये दीवानों की आदत है
मेरे मोहन तुम्हे अपनो को
तड़पाने की आदत है।।
मेरे मोहन तुम्हे अपनों को
तड़पाने की आदत है
मगर अपनों को भी है
जुल्म सह जाने की आदत है
मेरे मोहन तुम्हे अपनो को
तड़पाने की आदत है।।