बैठ सामने तेरे बाबा
तुझको रोज मनाता हूँ
गौर करोगे कभी तो बाबा
सोच के अर्जी लगाता हूँ
बैठ सामने तेरें बाबा
तुझको रोज मनाता हूँ।।
माना चाहने वाले बहुत है
तभी तो तुम इतराते हो
मुझे भूलकर खुश हो जब तुम
क्यों सपनों में आते हो
मुझ सा पागल नहीं मिलेगा
तुझको ये बतलाता हूँ
बैठ सामने तेरें बाबा
तुझको रोज मनाता हूँ।।
दीवानों की इस महफ़िल में
तुम मस्ती में खोए हो
सुना था प्रेमी के आंसू पे
तुम भी बाबा रोए हो
क्या कमी थी मेरे प्रेम में
समझ नहीं मैं पाता हूँ
बैठ सामने तेरें बाबा
तुझको रोज मनाता हूँ।।
एक ही अर्जी राखी करती
तेरी सेवा मिल जाए
मुरझाई सी इस बगियाँ में
फूल ख़ुशी के खिल जाए
कैसे चलेगा माधव ऐसे
कहो ना साथ निभाता हूँ
बैठ सामने तेरें बाबा
तुझको रोज मनाता हूँ।।
बैठ सामने तेरे बाबा
तुझको रोज मनाता हूँ
गौर करोगे कभी तो बाबा
सोच के अर्जी लगाता हूँ
बैठ सामने तेरें बाबा
तुझको रोज मनाता हूँ।।