बंसी बजैया,
किशन कन्हैया माने ना,
ये नटखट है,
माखन बिन समझे ना,
ये नटखट है,
माखन बिन समझे ना।।
गोकुल की ये सखियाँ सारी,
गोरस ले कर जाए,
साथी लेकर चुपके से ये,
उनके सामने आए,
इन सखियों की,
मटकी फोड़के भागे ना,
ये नटखट है,
माखन बिन समझे ना।।
बंसी बजाकर गैया लेकर,
वृन्दावन में जाना,
जमुना किनारे साथी लेकर,
मिल कर रास रचाना,
ढलते शाम ही,
वापस आए ये कान्हा,
ये नटखट है,
माखन बिन समझे ना।।
नन्द यशोदा का ये बालक,
गोकुल का उजियाला,
भाव भक्ति से उन चरणों में,
मैं पहनाऊ माला,
माखन खाने इस दुनिया में,
फिर आना,
ये नटखट है,
माखन बिन समझे ना।।
बंसी बजैया,
किशन कन्हैया माने ना,
ये नटखट है,
माखन बिन समझे ना,
ये नटखट है,
माखन बिन समझे ना।।