तुझे मन के झरोखो से
जब भी देखा है साँवरे
तुम पास नज़र आए
मेरे साथ नज़र आए
बंद करके झरोखो को
जरा बैठी मैं सोचने
मन में तुम्ही मुस्काए
मन में तुम्ही मुस्काए
तुझे मन के झरोखों से।।
फिल्मी तर्ज भजन : अँखियों के झरोखो से।
एक मन था मेरे पास जो
अब खोने लगा है
मोहन मेरे सपने तेरे
संजोने लगा है
एक तेरे भरोसे मैं
अब बैठी हूँ सांवरे
यूँ ही उम्र गुजर जाए
तेरे नाम गुजर जाए
तुझे मन के झरोखों से।।
जीती हूँ तुम्हें देख के
मरती हूँ तुम्हीं पे
तुम हो जहाँ मोहन मेरी
दुनिया है वहीं पे
दिन रात तुझे देखे
मेरा मन सोते जागते
मोहन मेरी उम्मीदों का
कभी फूल ना मुरझाए
तुझे मन के झरोखों से।।
जन्मों से तेरे रंग के
रंगों में रंगी हूँ
मैं जाग के सोई रही
नींदों में जगी हूँ
मोहन को मीरा से
कोई आके ना छीन ले
मन सोच के घबराए
यही सोच के घबराए
तुझे मन के झरोखों से।।
तुझे मन के झरोखो से
जब भी देखा है साँवरे
तुम पास नज़र आए
मेरे साथ नज़र आए
बंद करके झरोखो को
जरा बैठी मैं सोचने
मन में तुम्ही मुस्काए
मन में तुम्ही मुस्काए
तुझे मन के झरोखों से।।
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