तेरे दरस पाने को जी चाहता है।
खुदी को मिटाने को जी चाहता है।।
उठे राम की मुहब्बत के दरया।
मेरा डूब जाने को जी चाहता है।।
ये दुनिया है सारी नजर का धोखा।
हाँ ठोकर लगाने को जी चाहता है।।
हकीकत दिखा दे हकीकत वाले।
हकीकत को पाने को जी चाहता है।।
नहीं दौलत दुनिया की चाह मुझे।
कि हर रो लुटाने को जी चाहता है।।
है यह भी फरेबे जनूने मुहब्बत।
तुम्हें भूल जाने को जी चाहता है।।
गये जिस्त देकर जुदा करने वाले।
तेरे पास आने को जी चाहता है।।
पिला दे मुझको जाम भर भर के साकी।
कि मस्ती में आने को जी चाहता है।।
न ठुकराओ मेरी फरयाद अब तुम।
तुम्हीं में समाने को जी चाहता है।।
तेरे दरस पाने को जी चाहता है।
खुदी को मिटाने को जी चाहता है।।
ॐ