कैसे पाता मैं तुमको कन्हैया
इस ज़माने से जो गम ना मिलते
रिसते रहते मेरे घाव दिल के
आप जो बनके मरहम ना मिलते
कैसे पाता मै तुमको कन्हैया
इस ज़माने से जो गम ना मिलते।।
बस तेरी एक नजर से ही हमको
जो थे बिछड़े हमारे मिले है
बेसहारा था जीवन जो उसको
जिंदगी के सहारे मिले है
अपनी आँखों में लेकर के आंसू
खाटू में तुमसे जो हम ना मिलते
रिसते रहते मेरे घाव दिल के
आप जो बनके मरहम ना मिलते
कैसे पाता मै तुमको कन्हैया
इस ज़माने से जो गम ना मिलते।।
उनका एहसान मैं मानता हूँ
रात दिन डर था जिनका सताता
वो सितमगर सितम जो ना करते
तेरी चौखट पे मैं कैसे आता
सिलसिला साँसों का टूट जाता
मेरे हमदम जो उस दम ना मिलते
रिसते रहते मेरे घाव दिल के
आप जो बनके मरहम ना मिलते
कैसे पाता मै तुमको कन्हैया
इस ज़माने से जो गम ना मिलते।।
आत्मा मेरे तन में रही पर
तुझमे धड़कन मेरी खो गई है
रोती आँखों को तूने हंसाया
साँवरे बात सच हो गई है
तू पकड़ता ना मेरी कलाई
नैन मेरे जो ये नम ना मिलते
रिसते रहते मेरे घाव दिल के
आप जो बनके मरहम ना मिलते
कैसे पाता मै तुमको कन्हैया
इस ज़माने से जो गम ना मिलते।।
सोचकर के सहम जाता हूँ मैं
जो ये चौखट तुम्हारी ना मिलती
अश्क में डूबी रहती ये आखें
फूल जैसी कभी भी ना खिलती
बेधड़क दुःख हजारों ह्रदय को
और सुख जो बहुत कम ना मिलते
रिसते रहते मेरे घाव दिल के
आप जो बनके मरहम ना मिलते
कैसे पाता मै तुमको कन्हैया
इस ज़माने से जो गम ना मिलते।।
कैसे पाता मैं तुमको कन्हैया
इस ज़माने से जो गम ना मिलते
रिसते रहते मेरे घाव दिल के
आप जो बनके मरहम ना मिलते
कैसे पाता मै तुमको कन्हैया
इस ज़माने से जो गम ना मिलते।।