अकल कला खेलत नर ज्ञानी।
जैसे नाव हिरे फिरे दसों दिश।
ध्रुव तारे पर रहत निशानी।। (टेक)
चलन वलन रहत अवनि पर वाँकी।
मन की सूरत आकाश ठहरानी।।
तत्त्व समास भयो है स्वतंत्र।
जैसी बिम्ब होत है पानी।। अकल ….
छुपी आदि अन्त नहीं पायो।
आई न सकत जहाँ मन बानी।।
ता घर स्थिति भई है जिनकी।
कही न जात ऐसी अकथ कहानी।। अकल…..
अजब खेल अदभुत अनुपम है।
जाकूँ है पहिचान पुरानी।।
गगन ही गेब भयो नर बोले।
एहि अखा जानत कोई ज्ञानी।। अकल….
ॐ
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